Wednesday, October 15, 2014

...शैलेश मटियानी का बेटा बना ‘फेरी वाला बुकसेलर’

-परिवार के गुजारे को राकेश मटियानी फेरी लगाकर बेच रहे हैं किताबें
-परिवार टूटते, टपकते मकान में रहने को मजबूर
-पत्नी नीला मटियानी को भी समय पर नहीं मिलती पेंशन

जहांगीर राजू, हल्द्वानी से...

साहित्यकार शैलेश मटियानी के जीवन संघर्षों से हर कोई वाकिफ है। गांव की बीरानियों से लेकर इलाहाबाद, मुजफ्फरनगर व दिल्ली के संषर्घों के साथ मुंबई के फुटपाथ और जूठन पर गुजरी जिन्दगी के बावजूद उनका रचना संसार आगे बढ़ता गया। करीब 100 से अधिक प्रकाशित पुस्तकों का लेखन करने वाले शैलेश मटियानी को उनकी रचनाओं ने ही साहित्य के विश्व पटल पर अलग पहचान दिलायी। संघर्षों के बीच छोटे बेटे मनीष मटियानी की मौत से उनका रचना संसार धुंधला होता गया। आखिर 24 अप्रैल 2001 को वह तमाम अप्रकाशित रचना संसार को छोड़कर इस दुनिया से विदा हो गए। मटियानी की मौत के बाद उनके परिवार का संघर्ष और अधिक बढ़ गया है।बड़ा बेटा राकेश मटियानी इलाहाबाद छोड़कर हल्द्वानी चला आया है। कभी अपने पिता की कहानी संग्रह का संपादन करने वाला राकेश आज फेरीवाला बुकसेलर बन चुका है। मां नीला मटियानी, पत्नी गीता,बेटा 15 वर्षीय निखिल, 11 वर्षीय बेटी राधा की जिम्मेदारियों ने उसे फेरीवाला बना दिया है। वह आजकल अपने पिता की पुरानी किताबों को बेचकर परिवार का गुजारा करने के साथ ही स्टेशनरी का सामान भी फेरी लगाकर बेच रहे हैं। मां नीला मटियानी  को भी एचआरडी की पेंशन समय पर नहीं मिलती है। तत्कालीन यूपी सरकार की ओर से दिए गए टूटते व टपकते मकान में किसी तरह से पूरा परिवार रह रहा है।
 पिता के जन्मदिन के कार्यक्रम तक को मनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाने वाले राकेश मटियानी कहते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत उनकी रिश्तेदारी में आते हैं, वह पिता की किताबें यदि स्कूलों में लगा देते तो शायद रायल्टी से परिवार को गुजारा चल जाता। प्रख्यात साहित्यकार शैलेश मटियानी ने जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव में ‘जुआरी का बेटा व बुचड़ के भतीजे की आत्मकथा’ को लिखने का साहस जुटाया था, लेकिन उनके जीवित रहते उनकी यह हसरत पूरी नहीं हो सकी। आज स्थिति यह है कि उनका बड़ा बेटा राकेश मटियानी ‘फेरीवाला बुकसेलर बन चुका है। ऐसे में यदि शैलेश मटियानी जिंदा होते तो वह अपने बेटे के इस किरदार को अपनी कहानी का हिस्सा बनाने की हिम्मत शायद ही जुटा पाते...?


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