Monday, December 27, 2010

छिन गया छह मासूमों की खुशी का आसमान

शराब के जहर से तबाह हुआ एक और परिवार

जहांगीर राजू रुद्रपुर

शराब के जहर से एक और परिवार तबाह हो गया। इस बार शराब के जहर के शिकार हुए पिता व मां की मौत के बाद छह बच्चों से उनकी खुशी का आसमान छीन गया। अब इन नाबालिग बच्चों को फिर से खुशियां मिल पाएंगी या नहीं फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है। इस घटना ने हमें एक बार फिर से शराब से तबाह हो रहे परिवारों व समाज की हकीकत से रुबरु कराया है।
गिरधारी व निर्मला के बच्चें
नशा एक आदमी करता है, पर तबाह पूरा परिवार हो जाता है। गिरधारी लाल के परिवार के साथ भी यही हुआ। शराब के नशे के शिकार गिरधारी की मौत के बाद गम में पत्नी ने भी जहर खाकर जान दे दी। मां-बाप की मौत के बाद छह बच्चे भी हमेशा के लिए अनाथ हो गए। रुद्रपुर कलक्ट्रेट में चतुर्थ श्रेणी पद पर कार्यरत गिरधारी लाल शराब का एडिक्ट था। दतर से मिलने वाले वेतन का अधिकांश हिस्सा शराब में खर्च हो जाने के बाद छह बच्चों की जिम्मेदारी के बोझ को नहीं उठ पाने के कारण गिरधारी ने तनाव में जहर खाकर जान दे दी। गिरधारी की मौत के सदमे को उसकी पत्नी निर्मला भी बर्दाश्त नहीं कर सकी। उसने अपने छह बच्चों के बारे में कुछ सोचे बगैर अवसाद में आकर खुद भी जान दे दी। मोहल्ले के लोगों को यकीन नहीं हो रहा है कि एक दूसरे को बेपनाह मोहब्बत करने वाले गिरधारी व निर्मला इस तरह से कैसे जान दे सकते हैं। लेकिन उनका मनना है कि एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकने वाले दंपति के बीच बच्चों की जिम्मेदारी व आर्थिक तंगी को लेकर अक्सर बातें हुआ करती थी, लेकिन वह कभी झगड़ा नहीं करते थे। 24 दिसंबर की रात्रि ज्यादा शराब पी लेने के बाद गिरधारी काफी तनाव में था। तनाव बर्दाश्त नहीं कर पाने के कारण उसने जहर खाकर जान दे दी। पति की मौत के सदमें में छह बच्चों की मां निर्मला की भी जहर खाने से मौत हो गयी।

मां-बाप की मौत के बाद ममता (१५), मनोज (१३), विक्की (१३), गोलू (७) संध्या (३), मुस्कान (२)  हमेशा के लिए अनाथ हो गए हैं। अब यह छह मासूम किसके कंधे पर सिर रखकर रोएं इसका जवाब किसी के पास नहीं है। पिता के परिवार में अब कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं होने के कारण एकमात्र मामा व नानी पर अब इन छह बच्चों की जिम्मेदारी आ गयी है, जो मिर्जापुर में रहते हैं। लेकिन मामा की भी आर्थिक स्थित ठीक नहीं होने के कारण बच्चों का आगे का जीेवन कैसे चलेगा यह सवाल हर किसी की जुबान पर है। इस प्रकार देखा जाए तो गिरधारी लाल की गलती के कारण पूरा परिवार तबाह हो गया। में है। गिरधारी की गलती के कारण छह बच्चों की खुशी का आसमान उनसे हमेशा के लिए छिन गया है। इस तरह की घटनाओं का प्रतिबिंब हमारे समाज के आईने की तस्वीर को भी अक्सर धुंधला करता रहता है। 

एडिक्शन बना मौत का कारण

रुद्रपुर। मनोवैज्ञानिक डा. अजरा परवीन का कहना है कि शराब का एडिक्शन ही गिरधारी की मौत का कारण बना। उन्होंने बताया कि वेतन का अधिकांश हिस्सा शराब में खर्च हो जाने के कारण गिरधारी परिवार की जिम्मेदारी को बहन करने में नाकाम साबित हो रहा था। जिसके चलते ओसाद में आकर उसने अपनी जान दी। पति की मौत के बाद पत्नी ने भी कुछ सोचे समझे बगैर जहर खाकर जान दे दी। उन्होंने कहा कि इस पूरी घटना के लिए शराब पूरी तरह से जिम्मेदार है। शराब परिवार के साथ ही समाज को भी बर्बाद कर रही है। इस स्थिति में हमें शराब से तबाह हो रहे परिवारों व समाज के प्रति व्यापक स्तर पर लोगों को जागरुक किए जाने की जरुरत है।

Sunday, December 19, 2010

चांद-तारे देखो अब देवस्थल की पहाड़ियो से


एरीज ने की दूरबीन की स्थापना

देवस्थल पोस्ट की ओर से अद्वितीय कार्य के लिये वैज्ञानिको का आभार



130-cm telescope at Devasthal
नैनीताल जनपद के देवस्थल स्थान में एरीज (आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान) की 130-सेमी0 ब्यास की दूरबीन की स्थापना का प्रथम चरण सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया है । परियोजना प्रभारी एवं एरीज के वैज्ञानिक डा0 अमितेश ओमर ने बताया कि प्रथम चरण में प्राप्त परिणाम आशा के अनुरूप हैं । इस दूरबीन की स्थापना में वैज्ञानिक डा0 बृजेश कुमार, डा0 अमितेश ओमर, इंजीनियर श्री तरूण बांगिया, श्री जयश्रीकर पंत, श्री शोभित यादव, इयान हस, मार्क केली एवं रिचर्ड नील शामिल थे । दूरबीन से प्राप्त चित्रों से यह भी साबित हो गया है कि तारों के प्रेक्षण हेतु देवस्थल स्थान भारत में सर्वश्रेष्ठ होने के साथ विश्व की श्रेष्ठतम् जगहों में से एक है । इस दूरबीन की कोणीय भेदन क्षमता अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही इतनी अधिक है कि 200 किमी0 दूर स्थित एक कार या 9000 किमी0 दूरी में स्थित किसी भी शहर की बहुमंजली इमारत को यह दूरबीन आसानी से पहचान सकती है ।

Kritika Nakshtra picture taken from 130-cm telescope

मानव नेत्रों की तुलना में यह दूरबीन 60 लाख गुना कम रोशनी वाले तारों को देख सकती है ।
 इसकी क्षमता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 2500 किमी0 दूरी पर जल रही एक मोमबत्ती की रोशनी को यह दूरबीन एकत्रित कर उसे पहचान सकती है । डा0 ओमर के अनुसार किसी भी आप्टिकल दूरबीन के लिये उसके आकार से अधिक उसको स्थापित करने वाली जगह महत्वपूर्ण होती है । पृथ्वी के वातावरण में होने वाले वायुप्रवाह और हलचल के कारण सभी जगहों से खगोलीय पिण्डों की सटीक तस्वीर नहीं ली जा सकती  है । देवस्थल जगह की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि यह वायुप्रवाह सपाट और हलचल रहित है ।
       Mrigshirsha Nakshtra picture
संस्थान के निदेशक प्रो0 राम सागर ने बताया कि देवलथल के इस विलक्षण गुण का अनुमान एरीज के वैज्ञानिकों ने अपने 10 वर्षों के अथक प्रयासों से पहले ही लगा लिया था । आज 130 सेमी0 दूरबीन से प्राप्त तस्वीरों से देवस्थल का यह भौगोलिक गुण प्रमाणित हो गया है ।
प्रो0 राम सागर ने देवलथल क्षेत्र में पड़ने वाली पंचायतों के ग्रामवासियों प्रतिनिधियों, एवं क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकारियों से प्राप्त सहयोग के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आशा है कि भविश्य में भी देवलथल एवं नैनीताल जिले को अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर एक वैज्ञानिक पहचान देने में सभी का सहयोग प्राप्त होता रहेगा । एरीज के निदेशक ने यह भी बताया  कि अगले चरण में 3.6 मीटर दूरबीन की स्थापना का कार्य वर्ष  2012  में पूरा कर लिया जायेगा इस हेतु आजकल  एरीज में चल रही प्रोजेक्ट मैनेजमेन्ट बोर्ड  की बैठक में आगे की रणनीति का अध्ययन किया जा रहा है । एरीज के इंजीनियर तरूण बांगिया के अनुसार यह दूरबीन स्ट्रकचरल इंजीनियरिंग का एक अनूठा नमूना है जो कि तारों के अध्ययन के लिये अति उपयुक्त है ।
यह दूरबीन अत्याधुनिक तकनीक से बनी है जिसमें विमानन उद्योग से लेकर अति संवेदी अन्तरिक्षयानों के उपकरणों का भी प्रयोग हुआ है ।  यह दूरबीन अपने में आयी यांत्रिकी कमियों को स्वतः समझ कर सही करने की क्षमता भी रखती है । दूरबीन की घड़ियां एक सेकेण्ड के 1000वें हिस्से के बराबर सटीक काम करती है । इस दूरबीन का उपयोग सुदूर अन्तरिक्ष में स्थित आकाष गंगाओं एवं तारों के निर्माण प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझने के लिये गिया जायेगा । समय-2 पर होने वाले आकाषीय पिण्डों के विनाष के कारणों का पता भी लगाया जा सकेगा । इस दूरबीन से ब्लैक होल के बारे में भी अधिक जानकारियां जुटाई जा सकेंगी । अगले महीने इस दूरबीन एवं इससे दिखने वाले खगोलीय पिण्डों का सजीव प्रसारण इन्टरनेट के माध्यम से बंगलौर के स्कूली बच्चों के लिये किया जायेगा । दूसरे चरण में नयी तकनीक के फास्ट कैमरों की मदद से दूरबीन की भेदन क्षमता को और बढ़ाया जायेगा । 


Tuesday, December 14, 2010

1st State Critical Care Medicine program in Nainital


Kamal Jagati from Nainital

Nainital is observing the 1st State Critical Care Medicine program for two days, this program would refresh the Doctors about the Intensive Care that a emergency patient should be given to reduce the number of death’s at emergencies.
Indian Society of Critical Care Medicine in collaboration with the Ram Murti Hospital, Bareilly invited the doctor’s from Uttar Pradesh and Uttarakhand to attend the lectures and the workshop performed by the renowned personalities of the field. The Minister of State for Labor and Employment Harish Rawat in his address asked the doctors from Uttarakhand and Uttar Pradesh to attend the seminar and then help the patients save their lives. He added that the Doctor’s should have a vast knowledge about the field and they should remove the disease and not the diseased, this would help advancement of the Medical field. He also revealed that the Medical College in Uttarakhand is working properly but the district and base hospitals have to make it to the mark.
The president of the 20year old society Dr. AK Baronia, Pro. And head, Critical Care Medicine SGPGIMS told that if the critical patient reaches the hospital equipped with ICU (Intensive Care Unit) in time his chances of survival becomes higher, and the chances decreases when he loses time. Baronia told that the budget of America is one upon hundred times more than our countries.
Dr. Lalit Singh, Organizing secretary informed that the main conference will be preceded by hands on workshop on AIRWAY Management and Mechanical Ventilation where the delegates will practically work out. Lalit told that speakers of National and International level will discuss about the recent advances in the field of intensive care like Sepsis, Shock, Antibiotics use, Neurotrauma, Tropical infectious diseases, dengue, malaria and fungal, H1N1 influenza, Snake bite etc.
The meeting is expected to go way long improving the healthcare scenario in this region, and will continue tomorrow for the second and last day.

आखिर कहां जा रही रामनगर से गायब युवतियां

कोतवाली में दर्ज आधा दर्जन महिलाओं व युवतियों की गुमशुदगी के मामले अब तक रहस्य बने हुए है 


चन्दल बंगारी रामनगर

रामनगर से लगातार गायब हो रही युवतियों व महिलाओं के प्रकरण ने पुलिस के सुरक्षा दावों की कलई खोल कर रख दी है। एक के एक नए गुमशुदगी के प्रकरण पुलिस के लिए चुनौती बन रहे है। लड़कियों व महिलाओं के रहस्मयपरिस्थियों में लापता होने का सिलसिला सा चल पड़ा है। कोतवाली में दर्ज आधा दर्जन गुमशुदगी में मामले अभी भी रहस्य बने हुए है। महिलाओं के बढ़ते गुमशुदगी के मामलों के पीछे किसी बड़े गिरोह का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। 
 रामनगर से गायब चंद्रा रावत
क्षेत्र में लगातार गुमशुगदगी के मामलों में लगातार तेजी आती दिख रही है। इनमें अधिकांश मामले युवतियों व महिलाओं के है। आंकड़े देखें तो बीते दो माह में करीब आधा दर्जन लापता हुई महिलाओं व लड़कियों  को पुलिस अब तक तलाश नही कर सकी है। बीते 8 अक्टूबर को खताड़ी में रहने वाली रहीशा बेगम की 22 वर्षीय पुत्री तमन्ना खातून भी रहस्मयपरिस्थितियों में गायब हो गई। 9 नवंबर को नगर से 22 वर्षीय चंद्रा रावत भी लापता हो गई। 19 नवंबर को टेड़ा रोड में रहने वाली 25 वर्षीय विवाहिता संतोषी देवी भी अचानक गुम हो गई। 22 नवंबर को ग्राम ढिकुली में रहने वाली अशुली देवी उम्र 38 वर्ष भी घर से अचानक लापता हो गई। 28 नवंबर को सेमलखलिया में रहने वाली 15 वर्षीय सीमा रावत अचानक लापता हो गई। अब पीरूमदारा से 14 वर्षीय सुनीता के लापता होने की घटना ने पुलिस बैचेनी भी बढ़ा दी है।शांतिकंुज गली नंबर 8 पीरूमदारा में रहने वाले छोटे लाल ने तहरीर देते हुए कहा कि उसकी 14 वर्षीय पुत्री सुनीता 30 नवंबर की शाम 4 बजे घर से पीरूमदारा बाजार गई थी। काफी देर तक घर न आने पर उसकी खोजबीन की गई। मगर उसका कहीं पता नही चल सका है। उसने पुलिस से पुत्री को खोजने की गुहार लगाई है। पुराने गुमशुदगी के मामलों को सुलझाने में लगी पुलिस की परेशानी गुमशुदगी के बढ़ते मामले से बढ़ती जा रही है। सीओ प्रकाश चंद्र ने कहा कि गुमशुदगी के बढ़ते मामलों चिंता का विषय है।
रामनगर के गायब सुनीता 
उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में पुलिस को अहम सुराग हाथ लगे है। तीन माह पूर्व खताड़ी से लापता हुई तमन्ना खातून का एक साटवेयर इंजीनियर से अफेयर होने व उसके साथ जाने के सुराग हाथ लगे है। वहीं पिछले माह नगर से लापता हुई चंद्रा रावत का भी एक युवक अनुराग कश्यप के साथ जाने की पुष्टि हुई है। जिसके बाद अनुराग के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कर विवेचना की जा रही है। उन्होंने कहा कि गुमशुदगी के मामलों को सुलझाने के लिए डिस्ट्रिक, स्टेट क्राइम ब्यूरो के साथ ही नेशनल क्राइम ब्यूरों की भी मदद ली जाती है। 




Sunday, December 5, 2010

अजी ये क्यों याद करेंगे इंद्रासन को .....


अनन्त यात्रा में भी नहीं मिला वैज्ञानिकों का प्यार

                                       (जहांगीर राजू रुद्रपुर से)

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इन्द्रासन सिंह को अंतिम विदाई देने पहुंचे लोग

उत्तर भारत को जी भर कर भात खिलाने की मुहिम का सिपाही चला गया। इंद्रासन धान की ब्रीड  को पहचान ने, उसे सुधारने वाले इंद्रासन सिंह की सांसों की डोर टूट गई। लेकिन उससे क्या ? शानदार फार्म हाउसों के मालिक बड़े किसान, कृषि वैज्ञानिक और खेती के सरकारी महकमों की नींद इंद्रासन के चले जाने से भी नहीं टूटी। जिन कंधों को कभी हरित क्रांति के जनक अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलॉग ने थपथपाया था, वह अब खाक में मिल चुके हैं। लेकिन किसी की यशगाथाओं को चिताएं नहीं जला सकतीं। इंद्रासन रहें न रहें, वह आम लोगों के दिलों में तो रहेंगे ही। देवलथल पोस्ट ने यह जानने की कोशिश की कि कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विभाग और राजनीतिक दलों के कृषि प्रकोष्ठों ने क्या इंद्रासन की मौत का कोई संज्ञान लिया? जवाब ग्रामीण प्रतिभाओं को शर्मिंदा करने वाला है। किसी ने इंद्रासन सिंह को जानने से इनकार कर दिया तो कोई बस सतही जानकारी दे सका। 
क्या यह बस एक स्वतंत्रता सेनानी का हमेशा के लिए जाना भर है? नहीं वह सेनानी थे, यह एक पक्ष है। उस बूढे़ आदरणीय ठाकुर के व्यक्तित्व का एक शानदार पक्ष और भी था। वह था गरीबों को भर पेट भात खिलाने का जज्बा। जिसके लिए उन्होंने रोग से मर रहंे धान के खेत के केवल दो स्वस्थ पौधों पर चार महीने मेहनत की थी। साठ सत्तर के दशक की उनकी उस अथक मेहनत ने ही उत्तर भारत को धान की एक ऐसी ब्रीड दी, जिसके मुकाबले की ब्रीड अब तक कोई कृषि विवि नहीं दे पाया है। इंद्रासन सिंह को अपनी इस खोज को मान्यता दिलाने के लिए 3२ सालों तक संघर्ष करना पड़ा। जिसके बाद नेशनल इनोवेसन फाउंडेशन ने उन्हें 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद के हाथों सम्मानित करवाया। तब जाकर देश के कृषि वैैज्ञानिकों की नींद टूटी। इसके बाद पंतनगर विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने इंद्रासन धान का पेटेंट कराने की मुहिम शुरु की। वर्ष 2010 में दो माह पूर्व इस धान को पेटेंट कर लिया गया। गनीमत की बात यह रही कि इस धान को इंद्रासन सिंह के नाम से ही पेटेंट कराया गया। वरना इस देश के वैज्ञानिक कुछ भी कर सकते हैं। बावजूद इसके मृत शय्या में लेटे वैज्ञानिक कृषि के इस पितामह को याद करने के लिए उनकी अनन्त यात्रा में पंतनगर विश्वविद्यालय का कोई भी वैज्ञानिक नहीं पहुंचा। शायद आठ पास एक किसान का देश के बड़े कृषि वैज्ञानिकों को चुनौती देकर धान की नईं किश्म को इजाद करना इसका कारण रहा हो।
इंद्रासन सिंह की मौत के बाद उसका संज्ञान न लेना क्या इसी की खिसियाहट है? समाजिक क्षेत्रों में सक्रिय ग्रामीण प्रतिभाओं के हामी लोग कहते हैं, हां यह खिसियाहट ही है। बड़ी डिग्रियों वाले इंद्रासन की सराहना को अपनी हार मानते हैं। 


Friday, December 3, 2010

इन्द्रासन धान के जनक इन्द्रासन सिंह को आखिरी सलाम

कृषि वैज्ञानिकों को भी पीछे छोड़ दिया था इन्द्रासन सिंह ने

राष्ट्रपति एजीजे अब्दुल कलाम आजाद ने किया था सम्मानित

गांधी, नेहरु व पटेल के साथ जेल में रहकर किया सत्याग्रह

जहांगीर राजू रुद्रपुर

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंद्रासन सिंह ने इंद्रासन धान की खोज कर तराई व देश के किसानों को नई दिशा दी थी। उनकी खोज पर आधारित यह धान बाद में पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल समेत देश के कई राज्यों के किसानों को बीच लोकप्रिय हुआ । जिसके लिए वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद ने उन्हें सम्मानित किया था। तराई की खेती किसानों को नईं दिशा देने वाले 109 वर्षीय इंद्रासन सिंह शुक्रवार को इस दुनिया को छोडक़र चले गए हैं।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंद्रासन सिंह
इंद्रासन सिंह पंतनगर से लगे इंद्रपुर गांव में रहते थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया स्थित दुबौली गांव में हुआ था। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु व पटेल के साथ जेल में रहकर सत्याग्रह करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सैनानी इन्द्रासन सिंह को 1952 में इंद्रपुर गांव में जमीन दी गयी। वह अपने 6 पुत्रों केे साथ यहां रहकर खेती करने लगे। वर्ष 1962 में जब तराई में पैदा होने वाले धान की फसल किसी बीमारी के चपेट में आने से तबाह हो गयी थी। इन्द्रासन सिंह के खेत में भी बीमारी लगने से धान की सारी फसल चौपट हो गयी थी। खेत के पास निराश बैठे इन्द्रासन सिंह ने देखा कि जब खेत में सारे धान के पौंधे सूख गए हैं, ऐसे में दो चार पौंधे ऐसे हैं जो स्वस्थ दिखाई दे रहे हैं। इन्द्रासन सिंह ने धान के उन पौंधों को सहेज कर रखना शुरु किया। वह लगातार उन पौंधों को पानी देते और उनकी निराई गुड़ाई करते। कुछ समय बाद उन दो पौंधों में आई बालियां पक गई। बालियों के पकने के बाद उन्होंने उससे मिले धान को बीज के रुप में सुरक्षित कर लिया। दूसरे साल उन्होंने इसी बीच की बुवाई कर धान को सुरक्षित रख लिया। लगातार यही प्रयोग दोहराते रहने के बाद उन्होंने 20 कुंटल धान का बीज तैयार कर लिया। यह ऐसा बीज तैयार हुआ जिसमें किसी भी बीमारी का असर नहीं पढ़ता था। जिसके बाद इस बेनाम धान को उन्होंने तराई के किसानों को बांटना शुरु किया। रोग नहीं लगने के कारण यह बीज किसानों के बीच लोकप्रिय होता गया। 
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद
 से पुरस्कार प्राप्त करते इन्द्रासन सिंह
देखते ही देखते उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाण व पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों के किसानों के बीच इस धान की मांग बढऩे लगी। बाद में गांव में हुई पंचायत के निर्णय के बाद इस धान को इन्द्रासन नाम दिया गया। इन्द्रास सिंह को बाद में इसी धान के नाम से देशभर में इन्द्रासन धान के जाना जाने लगा। यह धान आज भी देश के कई राज्यों में बोया जाता है। जबकि पंतनगर विश्वविद्याल की ओर से खोजी गई 17 प्रजातियों में से कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। धान की उल्लेखनीय प्रजाति की खोज करने के बावजूद किसी भी सरकारी या गैर सरकारी अनुसंधान संस्थान ने इसकी केंद्र नहीं की। बाद में नेशनल इनोवशन फाउंडेशन इन्द्रासन सिंह के प्रयोग को सराहा। भारत सरकार के इस संस्थान से जुड़े कमलजीत ने देश के प्रमुख कृषि संस्थानों से जुड़े लोगों को इन्द्रासन सिंह की शोध से अवगत कराया। जिसके लिए नेशनल इनोवशन फाउंडेशन ने वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद के हाथों उन्हें सम्मानित करवाया। अहमदाबाद में हुए इस कार्यक्रम में उन्हें सेकेंड अवार्ड फार प्लांट वैरायटी से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने में उन्हें 3२ साल का समय लगा। विलगत शुक्रवार को 109 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। देश की आजादी व किसानों के लिए किए गए शोध कार्य के लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। 


                                          उन्हें देवलथल पोस्ट का सलाम



Wednesday, December 1, 2010

सदभावना का संदेश लेकर उत्तराखंड पहुंचे सरहद के वाशिंदे

कश्मीर के पुंछ जिले में एलओसी के पास रहने वाले कश्मीरी बुजुर्गों को भारतीय सेना प्रदेश की सैर पर लेकर आई है

चंदन बंगारी रामनगर

जम्मू कश्मीर में आंतकवाद के साए में जी रहे ग्रामीणों के लिए सेना ने अभिनव पहल की है। भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर रहने वाले बुजुर्ग ग्रामीणों को देश के अलहदा प्रदेशों की संस्कृति व सभ्यता से रूबरू कराने के लिए सदभावना यात्रा कराई जा रही है। जिसके तहत पुंछ जिले के ग्रामीणों का दल पांच दिनों की उत्तराखंड यात्रा पर पहुंचा है। कार्बेट पार्क की सैर के बाद दल में शामिल लोग उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सांे की यात्रा करेंगे। पहले दिन विश्वविख्यात कार्बेट पार्क में वन्यजीवों व प्राकृतिक सुंदरता को देखकर ग्रामीण काफी रोमांचित हुए।  
कुमाऊं रेजीमेंट की छठी बटालियन की तरफ से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित पुंछ जिले के गांवों दिगवार, कौशल्या, अजौत के 25 ग्रामीण प्रदेश भ्रमण पर रामनगर पहुंचे। बस में कई किलोमीटर की लंबी यात्रा कर पहुंचे ग्रामीण उत्तराखंड की खूबसूरती से बेहद खुश नजर आए। इनमें से अधिकांश ग्रामीण तो कभी पुंछ से बाहर तक नहीं निकले थे। कैप्टन शिवेश थापा ने बताया कि यात्रा का मकसद ग्रामीणों में सेना के प्रति विश्वास बढ़ाना है। यह बताना भी है कि सरकार ग्रामीणों के लिए बहुत कुछ कर रही है। भ्रमण के दौरान ग्रामीण दूसरे प्रदेश की संस्कृति से रूबरू होंगे। यात्रा के लिए वह लोग 22 नवंबर को पुंछ से निकले थे। घूमने की शुरूआत कार्बेट पार्क से हुई है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के तहत ग्रामीणों को नैनीताल, छोटी हल्द्वानी कालाढूंगी, रानीखेत, कौसानी सहित अनेक जगहों का भ्रमण भी कराया जाएगा। सेना की पहल को बेहतर बताते हुए ग्राम कौशल्या के प्रधान हरवंश सिंह ने कहा कि प्रदेश के खेत व जंगल की हरियाली देखने लायक है। यहां के लोग मिलनसार होने के साथ ही अनुशासित भी है। सेना आतंकियों के बीच रहने वालों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए बहुत से प्रयास कर रही है। इस प्रकार के कार्यक्रमों से सेना व ग्रामीणों के रिश्ते काफी मजबूत होंगे। वहीं ग्रामीण मोहम्मद रज्जाक, मोहम्मद यूसूफ, अब्दुल मजीद, नरसिंह आदि का कहना है कि पहली बार गांव से निकलकर दूसरे प्रदेश में आए है। हम शुक्रगुजार हैं कि सेना की वजह से हमें दूसरे प्रदेश में घूमने का मौका मिला। हमारा जीवन स्तर अच्छा बनाने के लिए सरकार व सेना लगातार कार्य कर रही है। भ्रमण में सूबेदार भूपाल सिंह, हवलदार पूरन सिंह, सिपाही जमन सिंह सहित ग्रामीण मौजूद रहे।    

पहली बार देखे रेलगाड़ी और हाथी 

रामनगर। पुंछ जिले से भ्रमण पर आए अधिकांश बुजुर्ग ग्रामीणों ने अब तक रेलगाड़ी नहीं देखी थी। उनका रेल देखने का सपना सेना ने साकार किया। इसके अलावा रामनगर में दुनिया के विशालतम जीव हाथी से भी कश्मीरी लोगों का पहली बार साबका पड़ा। राज्य भ्रमण पर आए कश्मीरी बुजुर्ग चलती रेलगाड़ी देखकर खासे रोमांचित हुए। जिले के ग्राम कौशल्या निवासी नजीर हुसैन ने कहा कि उनके अलावा अधिकांश ग्रामीण पहली बार रेल को चलते हुए देखकर सभी काफी खुशी हुए। वह गांव लौटकर हाथी व रेल के दर्शन के अनुभव को ग्रामीणों व परिवार जनों के साथ बांटंेगे।