Saturday, September 11, 2010

आखिर कब मिलेगा ग्रामीणों को दीमकों से छुटकारा

अल्मोड़ा जिले के अंतिम गांव लंबाड़ी में दीमकों से बचाव के लिए वैज्ञानिकों द्वारा दी गई दवाइयां बेअसर हो रही है
                                              चंदन बंगारी रामनगर



एक दशक से भी अधिक समय से दीमकों के आतंक से झेल रहे अल्मोड़ा जिले के लंबाड़ी गांव के ग्रामीणों को इनसे निजात नही मिल सकी है। पंतनगर के वैज्ञानिकों द्वारा दी गई दवाइयों से दीमकों को कोई असर होता नही दिख रहा है। हर साल की तरह इस वर्ष भी बरसात में बढ़ती दीमकों की तादाद ग्रामीणों के लिए मुसीबत खड़ी कर रही है। गांव के कई घर गिरने की कगार पर पहंुच चुके है। ग्राम प्रधान का कहना है कि कई बार मांग करने के बावजूद सरकार ग्रामीणों को सरकारी इमदाद नही दे रही है। 
                    लंबाड़ी गांव में दीमकों द्वारा क्षतिग्रस्त किया गया एक भवन

समुद्र तल से 1300 मीटर ऊंचाई पर बसा लंबाड़ी अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे ब्लाक का अंतिम गांव है। करीब तीस साल पहले अचानक गांव में दीमक लगना शुरू हुआ था। ग्रामीणों द्वारा दीपकों को नजरअंदाज करने से इनकी संख्या लगातार बढ़ती रही। गांव में बने घरों के दरवाजे, खिड़कियों के साथ ही दीमकों ने खेत व खाने के अनाज तक को नही छोड़ा। दीमकों ने गांव के कई घरों को खंडहरों में तब्दील कर दिया। जिसके बाद गांव से पलायन होना शुरू हो गया। करीब 5 परिवार गांव छोड़कर चले गए है। गांव में वर्तमान में 40 परिवारों में से 2 को छोड़कर बाकी बीपीएल श्रेणी के अर्न्तगत आते है।
गांव की खेती व फल सब्जियों को भी दीमकों ने चौपट कर दिया है। दीमकों से निपटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने नागपुर से केले व क्लोरोगार्ड दवाइयां मंगाकर वितरित की थी। मगर इसका दीमकों पर कोई असर नही हुआ। जनवरी 2009 में पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का दल गांव में आया था। दल के सर्वे में यह बात निकलकर आई थी कि गांव में बने मकानों में दीमकों का प्रकोप सबसे ज्यादा है। वहीं खेतों में 75 प्रतिशत व गंाव से सटे जंगल में 40 प्रतिशत दीमकों का प्रकोप मिला था। जिसके बाद वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों को दवाइयां दी थी। जिसका प्रभाव न होता देख 16-17 जुलाई 2010 को वैज्ञानिकों के दल ने गांव में बने 40 मकानों व 39 गौशालाओं में कीटनाशकों का छिड़काव किया था। 2 ग्रामीणों को छिड़काव का तरीका बताते हुए कुछ दवाइयां भी थी। दवा के छिड़काव से ग्रामीणों को कुछ रहत जरूर मिली थी। मगर बरसात के अधिक पड़ने से दीमकों की बढ़ती तादात ग्रामीणों के लिए मुसीबत खड़ी कर रही है।
अल्मोड़ा जिले से लंबाड़ी गांव में दीमकों द्वारा क्षतिग्रस्त किया गया एक भवन

 दवा का कोई असर इन पर होता नही दिख रहा है। गांव में बने 40 में से 15 मकान ढहने की कगार पर पहुंच गए है। गांव में रहने वालों की आर्थिक स्थिति देखते हुए विधायक से लोगों ने नया मकान बनाने के लिए मदद की मांग की। दो साल बाद केवल एक महिला पदमा देवी के नाम पर इंदिरा आवास मंजूर हुआ है। ग्राम प्रधान पदम सिंह का कहना है कि वैज्ञानिकों के छिड़काव से असर होता नही दिख रहा है। खेतों व घरों में दीमक फिर से दिखाई दे रहे है। वैज्ञानिक मकानों को दोबारा बनाने की बात कहते है। मगर गांव में अधिकांश परिवार गरीब होने के कारण मकान बनाने में सक्षम नही है। कई जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों के दौरों के बावजूद अभी तक ग्रामीणों को सरकारी मदद नही मिल पाई है। मुआवजे के लिए भेजे गए प्रस्तावों पर भी कोई अमल नही हो पाया है।

दीमकों को समूल नष्ट करना संभव नही

रामनगर। पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बीएस बिष्ट का कहना है कि दीमकों का समूल नाश नही किया जा सकता है। इन पर नियंत्रण जरूर पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इतने लंबे समय से आतंक मचा रहे दीमकों को तुरंत नियंत्रित करना संभव नही है। वैज्ञानिक दीमकों की बढ़ती तादात को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे है। जिसके तहत बदल-बदल का दवाइयों का प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सामाजिक व आर्थिक जीवन में दीमकों के नुकसान को कम करने के प्रयास किए जा रहे है। उन्होंने कहा कि पहले घरों के भीतर लगे हुए दीमकों को नियंत्रित किया जा रहा है। उसके बाद ही खेतों पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि कई दशक पुराने मकानों को नया बनाने की जरूरत है।  

सरकार पर गांव की अनदेखी का आरोप 

रामनगर। क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य पूरन रजवार का कहना है कि किसी भी सरकार ने गांव में दीमकों की समस्या पर ध्यान नही दिया। पंतनगर विश्वविद्यायल ने व्यक्तिगत रूचि लेकर गांव में सर्वे व दवाइयां बांटी है। ग्रामीण लगातार शासन-प्रशासन ने इसे आपदाग्रस्त गांव घोषित करने की मांग करते आ रहे है। मगर अब तक उनकी मांगे पूरी नही हो सकी है। जिसके चलते गांव में पलायन बढ़ रहा है। हालांकि वैज्ञानिकों की दवाई से कुछ असर दीमकों पर पड़ रहा है। लेकिन सरकारी मदद अभी तक जीरो है। ग्रामीण नैन सिंह व बची सिंह का कहना है कि सरकारें गरीबों की नही सुनती है। इतने साल दीमकों के बीच गुजारे है। बाकी बचे साल भी ऐसे ही कट जाएंगे। हमारी बात सुनने वाला कोई नही है।  

 क्या है लंबाड़ी

 1300 मीटर की ऊंचाई पर बसा गांव 

 30 साल से दीमकों के आतंक से परेशान

 कई जनप्रतिनिधियों दौरे के बाद भी मदद नही मिली

 खंडहर में तब्दील हो रहे है घर 

 पलायन के बाद 40 परिवार रह गए गांव में

 वैज्ञानिकों की दवाएं भी बेअसर 


1 comment:

  1. 'हिन्दुस्तान' के बाद यहाँ भी 'लंबाड़ी' की बर्बादी देखकर उसका चर्चा में होना अच्छा लगा ...बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी ...
    आप तो 'चन्दन' ठहरे.... कहीं भी रहें ----खुशबू ज़रूर आएगी ....

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