Sunday, September 5, 2010

औद्योगिकरण के नाम पर बंजर हो रही तराई की भूमि


नए उद्योग नहीं लगने से विरान पडे़ औद्योगिक प्लाट

टाटा को नहीं दी गयी सितारगंज में पड़ी बंजर भूमि

तराई के सितारगंज में 1000  सिडकुल रुद्रपुर में 60 एकड़ भूमि बंजर पड़ी हुई है।

                            जहांगीर राजू रुद्रपुर 

तराई में पिछले छह माह से नए उद्योगों के लगने का सिलसिला बंद होने से औद्योगिक अस्थान की हजारों एकड़ भूमि बंजर होती जा रही है। कभी हरा सोना उगलने वाली उद्योगों के लिए खाली की गयी इस भूमि पर अब घास उग रही है।
 सितारगंज स्थित औद्योगिक क्षेत्र में बंजर पड़ी 107५ एकड़ भूमि
उल्लेखनीय है कि तराई में उद्योगों की स्थापना के लिए रुद्रपुर में 4 हजार एकड़ व सितारंगज में 2२26 एकड़ भूमि का औद्योगिक अस्थान के लिए अधीग्रहण किया गया था। जिसमें से सिडकुल रुद्रपुर में मार्च माह के बाद से नए उद्योगों की स्थापना नहीं होने के कारण 60 एकड़ भूमि बंजर हो चुकी है। यह भूमि भी पहले पंतनगर विश्विद्यालय के अधीन थी, जिसमें पहले धान व गेहूं की खेती की जाती थी। 

सितारगंज में सिडकुल को दी गयी दो 2२26 एकड़ से अधिक भूमि में से 107५ एकड़ भूमि बंजर पड़ी हुई है।  बताते चलें कि टाटा ने पहले उत्तराखंड सरकार से नैनो के प्लांट की स्थापना के लिए एक हजार एकड़ अतिरिक्त भूमि दिए जाने की मांग की थी, लेकिन तत्कालीन खंडूरी सरकार ने टाटा को इतनी अधिक भूमि देने से इनकार कर दिया था। उस वक्त यदि यह भूमि टाटा को दे दी जाती तो आज टाटा नैनो का मदर प्लांट साणंद गुजरात में होने के बजाए उत्तराखंड में होता। सरकार के गलत फैसले के चलते यह भूमि अब पूरी तरह से बंजर हो चुकी है।
रुद्रपुर स्थित सिडुकल में लगे उद्योग


औद्योगिक पैकेज की समय सीमा समाप्त होने के बाद से क्षेत्र में नए उद्योग नहीं लग पाने के कारण इस भूमि में अब घास उग रही है। इस भूमि को पहले बासमती जोन के लिए सुरक्षित रखा गया था, लेकिन सिडुुकल को हस्तांतरित होने के बाद से ही यह जमीन बंजर पड़ी हुई है। इस भूमि में पहले धान, गन्ना, गेहूं की फसलें लहलहाती थी। सरकार की लापरवाही के चलते यह भूमि न तो औद्योगिक क्षेत्र के लिए विकसित हो सकी और नहीं इसका उपयोग बासमती जोन को विकसित करने के लिए किया जा सका। यदि टाटा नैनो का प्लांट इस क्षेत्र में लगता तो इससे राज्य सरकार को हर वर्ष दो हजार करोड़ से अधिक का राजस्व प्राप्त होता। अब शासन में बैठे बड़े अधिकारियों व सत्ताधारियों को कौन बताए कि बंजर भूमि से सरकार को कभी राजस्व नहीं मिलता।


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